
इश्क़ का गुलाब जो थम गया है
हथेली में आकर…
फिज़ाओं में खुशबू घुल रही है…..
हर्फ़-हर्फ़ मैं हूँ
और मुझमें तु है…
सूर्य की किरणों सा यह लाल रंग
उतर रहा है
जीवन में एक नया सवेरा लिये…
हिज्र के इन दिनों को भी मैं
इश्क़ लिख रही हूँ…
मुक्कमल इश्क़…..
कांच सी एक लड़की-14